दुनियाभर में स्किन कैंसर की सबसे प्रमुख वजह होती है सूरज से निकलने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें। सूरज की ये किरणें कार्सिनोजेनिक होती हैं। यानी इनमें कैंसर पैदा करने वाले तत्व होते हैं।
दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डर्मेटोलॉजिस्ट प्रोफ़ेसर सोमेश गुप्ता कहते हैं, “स्किन कैंसर का ख़तरा उन लोगों को ज़्यादा होता है जो धूप में काम करते हैं। शरीर पर कई साल तक रोज़ लंबे समय तक धूप लगे तो कुछ लोगों में इसका ख़तरा हो सकता है”। धूप में काम करने का मतलब है कि खेत, खुले मैदान और अन्य जगहों पर काम करने वाले लोगों में यह ख़तरा ज़्यादा होता है।
डॉक्टर का कहना है कि “इसका ख़तरा गोरे लोगों में ज़्यादा होता है। क्योंकि काली त्वचा ऊपर ही धूप के ज़्यादा हिस्से को एब्ज़ॉर्ब (सोख) कर लेती है और यह अंदर तक नहीं पहुंच पाती है। इसलिए उत्तर भारत के मुक़ाबले दक्षिण भारत के लोगों में यह ख़तरा कम होता है, क्योंकि उनकी स्किन उत्तर भारत के लोगों की स्किन की तुलना में थोड़ी काली होती है।”
अगर हमारी त्वचा को एक निश्चित मात्रा में सीमित अल्ट्रावायलेट किरणें मिलती हैं तो इसकी कोशिकाएं विटामिन डी पैदा करती हैं। ज़्यादा धूप में रहने पर हमारी त्वचा मेलानिन पैदा करती हैं। इस प्रक्रिया में ये ख़ुद को टैन (त्वचा का रंग गहरा होना) करके अपना बचाव करती है।
एम्स के डर्मेटोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉक्टर कौशल वर्मा बताते हैं, “यह बीमारी हाई ऑल्टिट्यूड यानी पहाड़ों पर रहने वाले लोगों में भी होने का ज़्यादा ख़तरा होता है क्योंकि वो यूवी किरणों के ज़्यादा एक्सपोज़र में होते हैं. किसी समय कश्मीर में शरीर को गर्म रखने के लिए इस्तेमाल होने वाली कांगड़ी की वजह से भी वहां यह बीमारी ज़्यादा हो रही थी।” यानी केवल धूप ही नहीं जो लोग गर्मी (आग) के सामने लगातार रहते हैं उन्हें भी आम लोगों के मुक़ाबले स्किन कैंसर का ज़्यादा ख़तरा होता है।